मैं हूं – एक भ्रम की कथा

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प्रस्तावित शीर्षक: “मैं हूं – एक भ्रम की कथा” (उपशीर्षक: ईश्वर, आत्मा और मानव की मालिकी का रहस्य) ️ प्रारंभिक भूमिका (भूमिका शैली में): “ईश्वर को खोजने की कोई ज़रूरत नहीं है — सिर्फ़ यह भ्रम गिरा दो कि ‘मैं हूं’। जब ‘मैं’ गिरता है — ईश्वर प्रकट हो जाता है। कोई नया नहीं मिला, केवल पर्दा हट गया।” — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓷𝓲 1. मैं हूं — यही भ्रम है। 2. ईश्वर वहाँ है जहाँ 'मैं' नहीं। 3. धर्म का आरंभ 'मैं' के अंत से होता है। 4. जब तक ‘मैं’ है, तब तक संसार का केंद्र भ्रांत है।