वो गांव जो नक्शे में नहीं है"(एक भटकी हुई रात… जो कभी ख़त्म नहीं हुई)रात के ठीक 8:47 पर, मोबाइल का नेटवर्क चला गया।आकाश और समीर को समझ नहीं आया कि जिस पहाड़ी रास्ते पर अभी तक सिग्नल आ रहा था, वहां अचानक सब बंद कैसे हो गया।“भाई ये रास्ता... अजीब नहीं लग रहा?”आकाश ने टोर्च ऑन करते हुए कहा।चारों तरफ घना जंगल, हवा नहीं — पर पत्ते हिल रहे थे। और पगडंडी सीढ़ियों जैसी नीचे उतर रही थी… खुद-ब-खुद।“चल यार, वापस चलते हैं,” समीर ने कहा।लेकिन जब पीछे मुड़े, तो जिस रास्ते से आए थे — वहां सिर्फ काली