हम जिस सदी में चल रहे है, हमें रूढ़िवादी सोच की जंजीर को तोड़कर ही आगे बढ़ना होगा। हम आधुनिक एवं शिक्षित समाज की कल्पना रूढ़िवादी एवं पारंपरिक विचारों को साथ लेकर नहीं कर सकते है। अपनी सभ्यता एवं संस्कृति का निर्वहन नहीं करते अपितु समाज के रूढ़िवाद को प्रश्रय देते है। हम अपनी आनेवाली पीढ़ी को सभ्यता के बारे में नहीं बताते लेकिन रूढ़िवादी सोच को ज़रूर प्रखर करते है। समय के साथ अपने बच्चों को उनकी अपनी इच्छाओं के साथ जीने की छूट मिलनी ही चाहिये। सामाजिक दिखावा के लिए हम अपनी रूढ़िवादी विचार अपने