तेरा ज़हर, मेरी मोहब्बत - 3

Episode 3: “तेरे नाम की कैद, मेरे जिस्म की सज़ा”“मुझे उससे डर नहीं लगता था… मुझे डर था खुद से — कि कहीं मैं उसे चाहने न लग जाऊँ।”वो रिश्ता नहीं चाहता था, लेकिन मुझे उसकी हर चीज़ से बाँध रहा था।नाम से नहीं, आदत से। इज़ाज़त से नहीं, पकड़ से।वर्धान सिंह राजपूत।वो मुझे रोज़ तोड़ता था — लफ़्ज़ों से, निगाहों से, और कभी-कभी सिर्फ़ अपनी चुप्पियों से। 16वीं मंज़िल की वो रातमैं खिड़की के पास खड़ी थी।बाहर बारिश हो रही थी।भीतर… कुछ और ही भीग रहा था।वर्धान उस दिन जल्दी घर आया।कोई पार्टी थी, बिज़नेस की। और उसे “मुझे” साथ