कलम परिवेश की शायरी

  • 908
  • 328

तेरी हर बात में बेशक सलीक़ा था मगर,हर सलीक़े में छुपा इक इल्ज़ाम भी था। मैंने हर मोड़ पे तुझसे तअल्लुक़ रखा,और तेरा हर जवाब, इन्तिक़ाम भी था। अब “परिवेश” को न कसूरवार समझा जाए,उसके हर लफ़्ज़ में बस एक सलाम भी था।                        @कलम परिवेश         ‘’ कहानी बेघर की ’’ बारिश में टूटी हुई छत की कहानी है, हर कतरा किसी बेघर की ज़ुबानी है। हमने जो छुपाया था तकिये में रो के कल, वो दर्द अब छत से टपकती निशानी है। भीग गए थे ख़्वाब भी उस