लाल बैग - 3

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रात का समय था। चारों ओर खामोशी पसरी हुई थी। पुराने मकान की दीवारों पर धीमी रफ्तार से चलती हवा टकरा रही थी। कमरे के अंदर बाथरूम से पानी की आवाज़ आ रही थी।राज नहा रहा था।बाहर कुर्सी पर बैठी रोज़ ने आवाज़ दी,“राज! नहा लिए? जल्दी करो, साथ में खाना खाएँगे।”राज ने भीतर से जवाब दिया,“अभी थोड़ा टाइम लगेगा… तुम खा लो।”रोज़ ने मुस्कुरा कर कहा,“ठीक है, लेकिन अच्छे से नहाना… हम साथ में ही खाएँगे।”राज की आवाज़ अब नहीं आई।रोज़ धीरे-धीरे बिस्तर के पास रखे लाल बैग के करीब पहुँची। उसने बैग की चेन खोली और अंदर झाँककर