वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्। अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥ १४॥जो मनुष्य वज्र पंजर नामक इस रामकवच का स्मरण करता है, उसकी आज्ञा का कहीं उल्लंघन नहीं होता और उसे सर्वत्र जय और मंगल की प्राप्ति होती है ॥ १४ ॥आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः । तथा लिखितवान्प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥ १५॥श्रीशंकरने रात्रिके समय स्वप्नमें इस रामरक्षा का जिस प्रकार आदेश दिया था, उसी प्रकार प्रातःकाल जागने पर बुध कौशिक ने इसे लिख दिया ॥ १५ ॥आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम् । अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान्स नः प्रभुः ॥१६॥जो मानो कल्पवृक्षों के बगीचे हैं तथा समस्त आपत्तियों का अन्त करने वाले हैं, जो तीनों