आन्या ने मन में सोचा—"कल तो ये पेस्ट्री तीस रुपये की थी... आज भी देख लूंगी, शायद वही हो।"इतना सोचकर वह हल्की सी मुस्कान लिए रेस्टोरेंट में दाखिल हुई। रेस्टोरेंट कम और स्वीट बेकरी ज़्यादा लग रही थी। जैसे ही वह अंदर आई, उसकी आँखें चारों तरफ घूमने लगीं, लेकिन अभिमान कहीं नज़र नहीं आया। वो पेस्ट्री की तरफ बढ़ गई।तभी पीछे से एक आवाज़ आई—“क्या चाहिए तुम्हें?”वो राघव था।आन्या ने एक पेस्ट्री की तरफ इशारा करते हुए मासूमियत से कहा, “वो चाहिए... कितने की है?”राघव मुस्कराया, “पैंतीस रुपये की है।”यह सुनते ही आन्या का चेहरा उदास हो गया। उसने