अलका 'राज़ " अग्रवाल ️️ . : ******ग़ज़ल**** मुहब्बत हमें हो गई अब किसी से। लगाया है दिल इसलिए शाइरी से।। दुआ है हमारी फ़क़त ये उसी से । न हो दुश्मनी अब किसी को किसी से।। वो दो चार दिन भी चुरा ज़िन्दगी से। जिन्हें नाम वअदों के करदे ख़ुशी से।। ग़रज़ थी हमेंभी तो कुछ रौशनी से। चुरा चाँद को लाये हम चाँदनी से।। मुझे बोलना जिनका अच्छा लगे है। मै डरती हूं उनकी उसी ख़ामुशी से।। फ़क़त रोधना और मसलना है उनको। उन्हें फूल से है न मतलब कली से।।