अलका "राज़ "अग्रवाल ️️ ****ग़ज़ल ****** क्या नया अपना लें सारा सब पुराना छोड़ दें। लोग कहते हैं हमें गुज़रा ज़माना छोड़ दें।। कब कहा है मैंने ये सारा ज़माना छोड़ दें। मेरे ख़ातिर अपने दिल में इक ठिकाना छोड़ दें।। ये तो सब होता ही होगा वो सब होना है जो। ज़ल जलों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें।। सिर्फ़ मेरा दिल नहीं मुजरिम दयारे- इश्क़ का। आप अब इल्ज़ाम ये मुझ पर लगाना छोड़ दें।। अश्क बारी में गुज़र जाए न अपनी ज़िन्दगी। ऐ ! ख़ुदा हंसने का क्या इंसां बहाना