*****ग़ज़ल**** 1212 1122 1212 22/112 ख़ुलूस ओ प्यार के सांचे में ढल के देखते हैं। जफ़ा की क़ैद से बाहर निकल के देखते हैं।। हम अपने आप को थोडा बदल के देखते हैं। चलो के हम भी हक़ीक़त पे चल के देखते हैं।। कई तो डरते हैं ये इश्क़ की अगन से मगर। तमाम उम्र कई इसमें जल के भी देखते हैं।। चुभेंगे पाओं में कांटे हमारे लाख मगर। वफ़ा की राह में कुछ दूर चल के देखते हैं।। बुझा न पाया ये दरिया जो प्यास को अपनी। चलो यहाँ से के सहरा में चल के