अशोक ने अपनी कार अर्जुन के सामने रोकी:> “बैठ ।”अर्जुन बेबस बैठ गया।रास्ते में झुककर अर्जुन खिड़की से बाहर देखता रहा,खामोश, विचलित, मायूस।जैसे ही कार अनु के घर पहुँची,अर्जुन फ़ौरन उछल कर बाहर गया, सीढ़ियाँ चढ़ता गया।अशोक भी आगे बढ़ गया।> “अनु! दरवाज़ा खोल!” — अर्जुन जोर से चिल्लाया।दरवाज़ा खुला — सामने सौम्या खड़ी थी।> “अर्जुन… प्लीज…”उसने शब्द पुरे किए बिन अर्जुन अंदर घुस गया।> “अनु कहाँ है? मुझसे बात करनी है!”सौम्या कोशिश करने लगी:> “प्लीज अर्जुन... माँ सो रही हैं, शोर मत करो।”> “तुम झूठ बोल रही हो! कहाँ है वह? बताओ!” — और उसने सौम्या के हाथ पकड़