एपिसोड 14 – जब नन्हीं लातों ने दस्तक दी---1. एक दोपहर – जब सबकुछ रुका, और कुछ पहली बार हिलादोपहर की चाय अब नैना के लिए एक आदत नहीं,बल्कि एक समय बन चुकी थी —जब वो खुद से बात करती थी,अपने भीतर की दुनिया से जुड़ती थी।वो अपने पेट पर हाथ रखे बैठी थी।आराम से, चुपचाप।और तभी…एक हल्की सी कंपन,जैसे किसी ने भीतर से धीरे से कहा हो –“माँ…”---2. नैना की चीख – पर डर से नहीं, चौंक से"आरव!!"आरव जो बालकनी में पेड़ की डालियों पर कुछ स्केच कर रहा था,भागते हुए आया।"क्या हुआ?""उसने… मुझे मारा…"नैना की आँखों में