राजू एक छोटे से गाँव का लड़का था, जिसका परिवार बेहद गरीब था। उसका बचपन मिट्टी के घर, आधे पेट भोजन और टूटी चप्पलों के साथ बीता। पिता खेतों में मजदूरी करते और माँ दूसरों के घर बर्तन मांजती। पढ़ाई का सपना तो था, लेकिन ज़िम्मेदारियाँ उससे बड़ी थीं।राजू को जब भी समय मिलता, वह गाँव के स्कूल में जाकर खड़ा हो जाता और बाहर से टीचर की बातें सुनता। उसका मन पढ़ने में बहुत लगता था। एक दिन गाँव के मास्टरजी ने उसकी लगन देख ली और कहा, "बेटा, अगर तू सच में पढ़ना चाहता है तो मैं तेरी