मौन कॉलर

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मौन कॉलररात के दो बज रहे थे। पूरा शहर गहरी नींद में डूबा हुआ था। सड़कों पर सन्नाटा पसरा था, जैसे सबकुछ ठहर गया हो।विक्रम अपनी मेज पर झुका काम कर रहा था। उसे देर रात तक फाइलें निपटाने की आदत हो गई थी। उसकी मेज पर जली टेबल लैंप की मद्धम रोशनी में एक पुराना फोन रखा था। ये फोन उसने कुछ महीने पहले ही एक एंटीक दुकान से खरीदा था।ठीक दो बजे अचानक उस फोन की घंटी घनघना उठी।ट्रिन… ट्रिन… ट्रिन…विक्रम का दिल जोर से धड़कने लगा। इतनी रात को कौन फोन करेगा?उसने हिम्मत जुटाई और रिसीवर उठा