रैदास (रविदास)

  • 360
  • 102

संत रैदास (रविदास)प्रभु की भक्ति में जाति-पाँति का भेदभाव न कभी था और न कभी हो सकता हैं। रैदास ने स्वयं कहा हैं: जाति भी ओछी, करम भी ओछा। ओछा कि सब हमारा।।नीचे से प्रभु ऊच कियो है।कह रेदास चमारा।।भगवान को अपना सर्वस्व मानने और जानने वाले व्यक्ति के सौभाग्य का वर्णन नही हो सकता। भगवान के भक्त अच्युत गौत्रीय होते हैं, उनकी चरण-रजवन्दना के लिए ऋद्धि-सिद्धि प्रतीक्षा किया करती है। संत रैदास भगवान के परम भक्त थे, उनकी वाणी ने भागवती मर्यादा का संरक्षण कर मानवता में आध्यात्मिक समता-एकता की भावना स्थापित की। वे सन्त कबीर के अग्रज थे, भगवान की