शुक्र है यार, दाल तो गोश्त बन जाती।" जैसे ही वह लाउंज में दाखिल हुई, उसे अपनी सास की आवाज़ सुनाई दी। रफ़ाना की मुस्कान कम हो गई और उसका गुस्सा चरम पर पहुँच गया।"ये लोग दाल-चावल के अलावा कुछ खाना नहीं जानते।" उसने ज़ोर से चुटकी काटी।और किचन काउंटर पर टिककर उसने गहरी साँसें लीं ताकि अपनी भावनाओं पर काबू पा सकूँ। आज, खड़े होकर, वह अतीत में खो गई थी, फिर से दाल का ऑर्डर दे रही थी। अबू की नौकरी अच्छी थी। घर में खूब पैसा था। किसी चीज़ की कोई कमी नहीं थी। मेज़ पर मांस