️ जलती हुई परछाईलेखक: विवेक सिंहरात के दो बज चुके थे। बाहर सुनसान सन्नाटा पसरा था। मीनाक्षी ने बिस्तर पर करवट बदली तो अचानक उसकी नज़र कमरे की दीवार पर पड़ी।हल्की सी रोशनी में उसे अपनी परछाई दिखी।लेकिन उसमें कुछ अजीब था—वो परछाई धीरे-धीरे हिल रही थी, जैसे उसमें कोई आग सुलग रही हो।मीनाक्षी ने घबराकर बल्ब जलाया। कमरे में सब कुछ ठीक था। उसने चैन की सांस ली, पर जैसे ही बल्ब की रोशनी परछाई पर पड़ी—उसके सिर से लेकर पैर तक झुरझुरी दौड़ गई।परछाई की पीठ से धुएं की पतली लकीर उठ रही थी। उसने हथेली से आंखें