अभागी

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अपने कमरे से सटी रसोई का वार्तालाप मैं सुन रहा था। “तुम्हारी रसोई में चुहिया बहुत आती है,नंदू,” घर में रसोई का काम नंदू के ज़िम्मे रहता, मां के नहीं। अपने आदेश भी नंदू मेरे पिता से ग्रहण करता, मां से नहीं। “तुम्हें रोज़ कहता हूं चुहिया मारने की दवा इस्तेमाल करो, मगर तुम्हारा काम ढीला है, बहुत ढीला…..” “नहीं बाबूजी,” नंदू हंसा, “रात में उस दवा की गोलियां सान कर रोज़ इधर दरवाज़े की दहलीज़ पर रख कर जाता हूं…..” “देख किशोर,” तभी मां मेरे कमरे में चली आयीं, “आज तेरे पिता फिर मुझे चूहे वाली दवा खाने को