"काश तुम बनारस होती" बनारस की गलियों से शुरू हुई दास्तां सुबह के साढ़े सात बजे बनारस की गलियों में वही रोज़ का शोर था — दूध वाले की आवाज़, मंदिर की घंटियां, और मोहल्ले की औरतों की बातचीत। लेकिन उस रोज़ शिवम का मन शांत नहीं था। शिवम, एक सीधा-साधा बनारसी लड़का, अस्सी घाट के पास एक छोटा सा फोटो स्टूडियो चलाता था। जिंदगी का बड़ा हिस्सा वहीं बीता था — वही गलियां, वही चाय की दुकान, वही घाट की सीढ़ियां। न कोई बड़ा सपना, न कोई लंबी प्लानिंग। वो मानता था कि “ज़िंदगी सादी हो तो