राम नाम के प्रेमी भक्त श्रीपद्मनाभ जी नाम महानिधि मंत्र, नाम ही सेवा-पूजा। जप तप तीरथ नाम, नाम बिन और न दूजा॥ नाम प्रीति नाम वैर नाम कहि नामी बोलें। नाम अजामिल साखि नाम बंधन ते खोलें॥ नाम अधिक रघुनाथ ते राम निकट हनुमत कह्यो। कबीर कृपा ते परम तत्त्व पद्मनाभ परचो लह्यो॥श्री पद्मनाभजी के मत मे श्रीराम नाम की महानिधि ही सबसे बड़ा मंत्र है। नाम जप को ही पद्मनाभ जी भगवान की सच्ची सेवा-पूजा मानते थे। इनके लिए राम का नाम ही जप, तप और सब तीर्थों का तीर्थ था। नाम के अतिरिक्त अन्य किसी तत्व या साधन को स्वीकार करना इन्हें नहीं रुचता था।