अनकही दास्तां - एक वृद्धाश्रम की करुण पुकार

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ये कहानी केवल मनोरंजन के लिए नहीं लिखी है ये एक संदेश है उन मौजूद ओर आगे आने वाली पीढ़ियों को अपने माता पिता को वृद्धाश्रम का दर्द न दे इस कहानी के माध्यम से उनका दर्द महसूस करे शाम के धुंधलके में जब सूरज पहाड़ों के पीछे छिप रहा था, तब वृद्धाश्रम के आंगन में बैठे बुजुर्गों की आंखों में एक अलग ही किस्म का इंतजार था। कोई अपने बेटे के फोन का इंतजार कर रहा था, कोई अपनी बहू की आवाज सुनने को तरस रहा था, तो कोई पोते की किलकारी याद करके गहरी सांसें ले रहा था।  70