21.भक्ति में क्या करें, क्या न करेंवादौ नावलम्ब्यः ||७४|| बाहुल्यावकाशादनियतत्वाच्च ॥७५||अर्थ : वाद-विवाद का अवलंब नहीं लेना चाहिए ।।७४।। क्योंकि बाहुल्यता का अवकाश है तथा वह अनियत है ।।७५।।भक्ति, प्रेम का पर्याय है और जहाँ प्रेम है वहाँ वाद-विवाद का प्रश्न ही नहीं उठता। क्योंकि प्रेम सब स्वीकार करता है। आज किसी का विरोध नहीं करता। जबकि वाद-विवाद का आधार ही अस्वीकार, विरोध, असहमतियाँ होती हैं। असल में किसी भी बात में वाद-विवाद करना बिलकुल निरर्थक है क्योंकि यह आपकी ऊर्जा और समय दोनों नष्ट करता है। वैसे भी सामने वाले पर अपनी बात सिद्ध करके कभी कुछ हासिल नहीं होता क्योंकि