नारद भक्ति सूत्र - 20. एकांत भक्त की महिमा

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20.एकांत भक्त की महिमाकंठावरोधरोमांचाश्रुभिः परस्परं तपमानाः पावयंति कुलानि पृथिवीं च ||६८||अर्थ : एकांत भक्त कण्ठावरोध, रोमांच तथा अश्रुपूर्ण नेत्रों से परस्पर संभाषण करते हुए अपने कुलों तथा पृथ्वी को पवित्र करते हैं ।। ६८ ।। प्रस्तुत सूत्र से लेकर अगले कुछ सूत्रों में नारद जी अनन्य एकांत भक्तों की महीमा गा रहे हैं। एकांत भक्ति में भक्ति अपने शिखर पर पहुँचती है। एकांत भक्ति में ही मीरा गाती है, 'मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई' यानी वे खुलेआम उद्घोषणा कर रही है कि उनका प्रेम, उनकी भक्ति सिर्फ उनके आराध्य कृष्ण के लिए ही है, अन्य किसी सांसारिक सुख या