शाम ढल रही थी। आसमान पर सुरमई बादल छाए थे, जैसे कोई बड़ा तूफान आने वाला हो। गाँव के बाहर, बड़ के पेड़ के नीचे, एक बूढ़ा आदमी चुपचाप बैठा था। उसका नाम था विक्रम सिंह।पूरा गाँव उसे 'ठाकुर साहब' कह कर बुलाता था। लेकिन आज उसकी आँखों में न जाने क्यों अजीब सी बेचैनी थी।आज से ठीक बीस साल पहले इसी तारीख़ पर उसकी ज़िंदगी पूरी तरह बदल गई थी।उसका इकलौता बेटा राजवीर गाँव छोड़कर शहर चला गया था।कह गया था—"बाबा, मैं बड़ा आदमी बनकर लौटूंगा। फिर आपको भी शहर ले जाऊँगा।"उस दिन से अब तक ठाकुर साहब रोज़