धीरु शहर से दूर एक छोटे से गांव, चंदनपुर में रहता था, जहां हर चीज़ में सादगी और हर दिल में अपनापन था, लेकिन इस गांव की एक बात बाकी सब चीजों से अलग थी—यहां एक वीरान हवेली थी जिसे लोग "तन्हा हवेली" के नाम से जानते थे, कहते हैं वहां कभी कोई गया तो वापस नहीं लौटा, और जो लौट आया वो फिर कभी पहले जैसा नहीं रहा, गांव के बुज़ुर्ग कहते थे कि उस हवेली की दीवारों में किसी का दर्द कैद है, जो अब तक सुलगा हुआ है, और उसी दर्द की आंच में अब महक का