जिंदगी के दुश्मन - एक साजिश, एक कुर्बानी

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चार छायाएं बचपन से एक थीं – अनूप, आनंद, पवन और बबलू। उनकी हंसी, उनकी शरारतें, उनके खेल, उनके सपने – सब कुछ साझा था। जब भी कोई गिरता, बाकी तीन उसे उठाने के लिए जान की बाज़ी लगा देते। गांव की गलियों में उनकी दोस्ती की कहानियां हवाओं में उड़ती थीं – "अगर कोई दोस्ती को जीता है, तो ये चारों।"मगर वक़्त बहुत बेरहम होता है। वो खेलता नहीं, बदलता है... और जब बदलता है, तो जड़ से बदल देता है।कॉलेज की उम्र आई। नई दुनिया, नए लोग, नई मोहब्बतें। और बस यहीं से शुरुआत हुई उस दरार की,