सुमित का बचपन एक छोटे से गाँव में बीता, जहाँ न तो बड़ी इमारतें थीं, न ही इंटरनेट का नामो-निशान। लेकिन एक चीज़ थी जो उसे बाकी बच्चों से अलग बनाती थी—उसकी नज़र। नहीं, वो किसी चमत्कार की बात नहीं थी, बल्कि उसकी नज़र में तस्वीरें बसी होती थीं। किसी टूटे हुए खिलौने में भी वो कहानी खोज लेता था, किसी सूखे पेड़ में भी उसे ज़िंदगी की झलक मिलती थी।सुमित का सपना था—फोटोग्राफर बनने का। लेकिन उसके पिता को ये सब “बेवकूफी” लगता था। वो कहते, “तस्वीरों से पेट नहीं भरता, खेती कर, असली काम सीख।”माँ बस चुप रहती,