शब्दों का बोझ - 5 (अंतिम भाग)

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“जो बात एक बार में न समझे, वो सौ बार सुनकर भी नहीं समझेगा। और जो समझता है, उसे कहने की ज़रूरत नहीं।”1. अंत का आरंभराघव अब पहले जैसा नहीं रहा।शब्दों के पीछे भागते-भागते थक चुका था।उसने बहुत कुछ कहा, बहुत बार कहा,कभी सच्चाई से, कभी दर्द से, कभी उम्मीद से…पर अब वो सब खत्म हो गया था।अब वह हर उस बात से परे हो गया था जिसे वह पहले दुनिया की नज़र से देखता था।अब उसे दूसरों की समझ की परवाह नहीं थी।अब उसे किसी को बदलने की कोशिश नहीं करनी थी।अब उसे सिर्फ़ खुद को सहेजना था।2. डायरी