खुरपी से कलम तक

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भोर की पहली किरण जब धरती पर उतरती थी, तब गांव की पगडंडियों पर एक धुंधली-सी हलचल दिखाई देती,ओस से भीगी घास की गंध और मिट्टी की सौंधी सुगंध के बीच से एक दुबला-पतला लड़का अपनी मां के पीछे-पीछे चलता हुआ खेत की ओर बढ़ रहा होता,उसका नाम था — रतन। उम्र कोई दस-ग्यारह बरस की रही होगी, पर माथे की शिकन और पैरों की थकान में कोई बालपन नहीं झलकता था। हाथ में एक पुरानी, जंग लगी खुरपी, जिसे उसके दादा कभी इस्तेमाल करते थे, और पीठ पर एक झोला, जो जगह-जगह से रफू किया हुआ था। उसमें आधी