रात का समय था। आसमान में बादल गरज रहे थे, और सड़कें सुनसान थीं। शहर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल के बाहर एक बूढ़ा आदमी भीगी ज़मीन पर बैठा था। उसकी आंखें अस्पताल के गेट पर टिकी थीं, मानो किसी अपने की झलक का इंतज़ार कर रही हों। हाथ में फटी हुई चप्पल, बदन पर पुराना कुरता और माथे पर चिंता की गहरी लकीरें। ठंडी हवा में भी उसका पसीना नहीं रुक रहा था। उसका बेटा, आशीष, एक एक्सीडेंट में बुरी तरह घायल हो गया था। उसे तुरंत ऑपरेशन की ज़रूरत थी, पर डॉक्टरों ने कहा—खर्चा ज़्यादा होगा, खून