साईं बाबा

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संत साईं बाबा आपा-पर सब दूरि करि, रामनाम रस लागि। दादू औसर जात है, जागि सके तो जागि॥ —दादू सन्तसन्त चरित्र के चिंतन और स्मरण की अलौकिकता दिव्यता भवसागर से पार उतरने की तरणी है। सन्त चरण की एक धूलि कणिका कोटि-कोटि गंगा से भी नही तौली जा सकती है। जिस प्राणी पर सन्त की कृपा-दृष्टि अनायास पड़ जाती है। उसके जन्मजन्मान्तर के पापो का क्षय हो जाता है, पुण्य की समृद्धि बड़ जाती है। साईं बाबा एक ऐसे ही सन्त थे जिन्होने अभी कुछ ही समय पहले पृथ्वी पर उतरकर अपनी अलौकिक चरित्रलीला, विमल चरणधूलि कणिका और दिव्य कृपा से असंख्य