18.भक्ति की रक्षास्त्रीधननास्तिकवैरिचरित्रं न श्रवणीयम् ||६३||अर्थ : वासना, धन, नास्तिक तथा वैरी का श्रवण नहीं करना चाहिए ।।६३।।भक्ति कोई ऐसा स्थूल खज़ाना नहीं है, जिसे आपने एक बार पा लिया और तिजोरी में बंद करके रख दिया तो वह आपके पास सुरक्षित रहेगी। फिर आप उस खज़ाने को कितने भी समय बाद खोलकर देखें, वह उतने का उतना ही मिलेगा। भक्ति, एक भाव है जिसे बनाए रखने के लिए और समृद्ध करने के लिए आपको निरंतर प्रयासरत रहना होगा। उन सभी बातों से, संगो से दूर रहना होगा, जो उस भाव को समाप्त कर सकते हैं। सीधे शब्दों में कहें