शब्दों का बोझ - 4

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“जब चुप्पी आदत बन जाए, तब शब्द भी पराये लगने लगते हैं।”1. आदत की चुप्पीराघव अब बोलता नहीं था — पर इसका मतलब ये नहीं था कि उसे कुछ कहना नहीं था।उसके भीतर बहुत कुछ था, मगर अब वो अपने भीतर ही रह जाता था।लोग सोचते,“ये तो अब बहुत शांत हो गया है।”पर कोई नहीं जानता था कि उस शांति के पीछे कितनी तोड़-फोड़ हो चुकी है।अब वो रोज़ अपनी चाय की चुस्की के साथ किसी से नहीं, बल्कि अपने भीतर चल रही बहस से बात करता था।और ये बहस अब रोज़ की आदत बन चुकी थी — एक आदत