June 28, 2025“हर बार समझाने की ज़रूरत हो, तो शायद समझने वाला ही ग़लत चुन लिया है।”1. रिश्तों की छाँव में सन्नाटाराघव की ज़िंदगी में अब शांति थी—या कहें, उसने शांति का भ्रम पाल लिया था। कुछ रिश्ते अभी भी साथ थे, पर अब उनमें आवाज़ें कम और चुप्पियाँ ज़्यादा थीं। वह जानता था कि हर रिश्ता संवाद से नहीं, समझ से चलता है। लेकिन अब उसे ये भी पता चल गया था कि समझ सबके बस की बात नहीं।एक पुराना दोस्त आया, हल्की मुस्कान के साथ बोला—“यार, तू बहुत बदल गया है।”राघव ने जवाब नहीं दिया, बस मुस्करा दिया।कभी-कभी