देर रात जगाने के कारण आज शरीर आलस के सौम्य अहसास से लिपटा था और पलकों पे मायावी सपनो की धुंध छाई हुई थी।बीच बीच में आंखे खुलती मगर फिर नींद की लोरी में गुम हो जाती।जब आंख खुली तो घड़ी में दस बज रहे थे,रोज लेट होने के डर से शरीर की आदत पड़ गई थी हड़बड़ाहट में उठने की, अचानक हड़बड़ा के उठा फिर याद आया कि आज तो दफ्तर में छुट्टी है।थोड़ी देर इधर उधर कर के जब कुछ न सुझा की क्या करूं तो उपन्यास ले के बैठ गया , मगर मन कुछ खास लगा नहीं