नारद भक्ति सूत्र - 17. भक्ति की युक्ति-कर्मयोग

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17. भक्ति की युक्ति-कर्मयोगलोकहानी चिंता न कार्या निवेदितात्मलोकवेदत्वात् ॥६१||अर्थ : भक्त लोकहानि की चिंता नहीं करता। वह लौकिक तथा वैदिक, सभी कर्मों को प्रभु को निवेदित कर देता है ।।६१।।प्रस्तुत दो सूत्रों में नारदजी ने उस आध्यात्मिक सीख को समेटा है, जिसे श्रीकृष्ण ने गीता में कर्मयोग के नाम से संसार को दिया था। कर्मयोग, भक्ति की ऐसी युक्ति है जिसे अपनाकर भक्त संसार में रहते हुए, अपने सांसारिक जीवन का निर्वाह करते हुए, ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए भी परम मुक्ति को प्राप्त कर लेता है। इसे समझना उन संसारियों के लिए बहुत आवश्यक है, जो संसार में रहते हुए भक्ति