16.भक्ति की विशेषताअन्यकमात् कौलभ्यं भक्तौ ॥५८॥अर्थ : अन्य की अपेक्षा भक्ति सुलभ है ।।५८।।परम भक्त नारदमुनि ही नहीं अन्य सभी श्रेष्ठ भक्त विभूतियाँ भक्ति को सबसे सहज, सरल और सुलभ मार्ग मानते हैं। सभी आध्यात्मिक ग्रंथ भी यही कहते हैं। सुलभ यानी जो आसानी से उपलब्ध हो जाए, जिसे पाने के लिए आपको ज़्यादा प्रयत्न न करने पड़ें।मान लीजिए, आपको किसी से प्रेम है और आपसे पूछा जाए- 'प्रेम करने के लिए आपको क्या-क्या कष्ट उठाने पड़े?' तो आपका यही जवाब होगा कि 'प्रेम करने के लिए कष्ट उठाने की क्या ज़रूरत है, प्रेम तो यूँ ही हो जाता है।'