काल की करवट

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"काल जब करवट लेता है,तो सिर्फ़ समय नहीं,जिंदगी की दिशा, रिश्तों की परिभाषा और सपनों की मंज़िल भी बदल जाती है।जो आज है, वही कल नहीं होता,और जो बीत गया, वो कभी वैसा लौटकर नहीं आता" धूल से अटी पगडंडी, सूखे आम के पेड़, और दूर से आती बैल की घंटियों की धीमी आवाज़,यही था गोपाल का गांव धनपुर। न कोई पक्की सड़क, न अस्पताल, न ढंग का स्कूल। बरसात में जब गांव तालाब बन जाता, तो बच्चे मिट्टी में फिसलते-गिरते स्कूल तक पहुंचते। और गर्मियों में खेत सूखकर दरारों में बदल जाते।लेकिन इन्हीं दरारों के बीच गोपाल ने सपनों का