“यार पापा, बड़े बेदर्द थे आप…”ये शब्द मेरे होठों पर उस रोज खुद-ब-खुद आ गए जब मैंने पहली बार अपने बेटे को साइकिल चलाना सिखाने के लिए पीछे से हाथ हटाया। वह थोड़ा डगमगाया, गिरा, और मेरे सामने रोने लगा। मैं भी भीगी आँखों के साथ मुस्कराया, और शायद वहीं पहली बार मुझे अपने पापा की 'बेदर्दी' समझ आई।मेरा एक बेटा है और मेरी पत्नी एक स्कूल में टीचर है। लेकिन इस कहानी का मुख्य पात्र न मैं हूँ, न बेटा, न पत्नी। यह कहानी मेरे और मेरे पापा के बीच की एक लंबी, गहरी, और अस्फुट बातचीत है—जो मैं