माँ का आख़िरी खत - 1

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  > "बेटा, जब तू ये खत पढ़ रहा होगा... शायद मैं इस दुनिया में नहीं होऊँगी।"   बस यही एक लाइन थी उस खत की शुरुआत में, जिसे अरमान ने माँ के पुराने संदूक से निकाला था। संदूक वो था जो उसने पिछले 7 सालों से छुआ भी नहीं था — और उस दिन, ना जाने क्यों, उसका मन किया खोलने का।   वो संदूक, जो माँ की आखिरी निशानी थी। वहीं रखी थी — कमरे के एक कोने में, धूल से भरा, चुपचाप।   अरमान ने धीरे से ढक्कन उठाया। पुरानी साड़ियां, एक टूटी हुई चूड़ियों की डिब्बी,