वो आख़िरी ख़त: एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल कहानी

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दिल्ली की हल्की ठंडी शामें यूं तो हर किसी को भीतर तक भिगो देती हैं, मगर उस दिन कुछ और ही बात थी। नवंबर का महीना अपनी विदाई की आहटें लिए खड़ा था। बादल उमड़े हुए थे, मानों किसी अनकही कहानी को बयान करने के लिए बेचैन हों, और हल्की बारिश की बूँदें शहर की धूल को धो रहीं थीं, पत्तों और सड़कों को एक भीनी सी खुशबू से तर कर रही थीं। शाम के लगभग छह बजे थे, और कनॉट प्लेस के शोरगुल से थोड़ी दूरी पर स्थित, एक पुराने लेकिन सुकून भरे कैफ़े की खिड़की के पास बैठा