15.भक्ति के भेदगौणी विधा गुणभेदादार्तादिभेदाद्वा ॥५६॥उत्तरस्मादुत्तरस्मात्पूर्वपूर्वा श्रेयाय भवति ॥ ५७।।अर्थ : गौणी भक्ति गुण भेद से तथा आर्तादि भेद से तीन प्रकार की होती है।। ५६ ।। पूर्व क्रम की भक्ति उत्तरोत्तर क्रम से श्रेयस्कर होती है।। ५७।।नारदजी ने ४७ भक्ति सूत्र में इंसान की त्रिगुण प्रकृति के बारे में बताया था ना कि हर इंसान के अंदर प्रकृति ने मूल रूप से तीन गुणों का समावेश किया हुआ है– तम, रज और सत। इन्हीं त्रिगुणों के संयोग यानी कॉम्बिनेशन से इंसान का स्वभाव तय होता है, उसमें भाव और विचार जगते हैं, बुद्धि निर्णय लेती है और उससे कर्म होते