मन की हार, ज़िंदगी की जीत - भाग 3

हमारे समाज की Conditioningहम पैदा होते हैं एक खुली किताब की तरह — न कोई डर, न कोई सोच, न कोई सीमा। लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हमारे आसपास का समाज, परिवार, शिक्षक, रिश्तेदार, दोस्त — सब हमें बताने लगते हैं कि क्या सही है, क्या गलत है, किससे डरना है, किससे उम्मीद रखनी है, और किस हद तक सपने देखने चाहिए।यह प्रक्रिया धीरे-धीरे हमारे दिमाग़ की “प्रोग्रामिंग” बन जाती है। इसे ही कहते हैं conditioning — एक ऐसी मानसिक स्थिति जिसमें हम खुद की सोच से ज़्यादा समाज की सोच से प्रभावित हो जाते हैं।“ये तुम्हारे बस की