मंजिले ------ मर्मिक कहानियो की पोथी है जो जज्बाती और भावक थी। इंसान सोचने पर मजबूर हो जाता है कभी कभी..... "ये " इस कहानी का शीर्षक है। ये ऐसा होता, ये ऐसा न भी होता।हमारे देश का विकास" ये" पर ही रुका हुआ है!!पूछो कैसे इनका ये ही कभी लम्बे भाषण से हटा ही नहीं.... जानते हो तरवेणी संगम मे भी ये ने खास भूमिका निभायी। ये ऐसा न भी होता, ये हो गया। हम देशवासी बेहद दुखी है, ये न होती, ऐसी भखदड़ तो सब गरीब बच जाते।ऐसा ही अहमदाबाद मे हुआ कितने ही यात्री मर गए। यहां