काफला यूँ ही चलता रहा - 6

काफला यूँ ही चलता रहा -------(5)खारो पर जो सारी जिंदगी चले हो, फूल भी उनको खार की तरा ही लगते है ----ये मनोविज्ञान की किताब मे लिखा कैसे मै भूल सकता हूं। लम्बा जवान सडोल बाड़ी मे पहली वार उसे देखा था... आज वो लेट ही उठा था.. खोली मे जमीन मे सोना उसे सब तकलीफो से दूर कर देता था, लेट सोना, लेट उठना उसका मूड ही बन गया था। और भी बहुत कुछ शामिल था। इसी को जिंदगी कहते है। मौज मस्ती की। वो अक्सर आपने बापू के बारे ही सोचता था। जो जयादा सच भी होता, झूठ