सर्दियों की एक ठंडी सुबह थी। शहर की हलचल अभी शुरू नहीं हुई थी। सड़कों पर हलकी धुंध छाई हुई थी, और एक पुराना कॉफी हाउस अपनी रूटीन तैयारियों में जुटा था। उसी कॉफी हाउस की खिड़की के पास, एक अधेड़ उम्र का आदमी बैठा था — शांत, संयमी, और अंदर से जैसे किसी तूफ़ान को समेटे हुए।उसका नाम था विवेक राणे।कभी अपने कॉलेज के समय का टॉपर, जिसे भविष्य का सितारा कहा जाता था, आज ज़िंदगी के किनारे खड़ा था, अपनी ही कहानी को बिखरे पन्नों की तरह समेटने की कोशिश में।विवेक पुणे के एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज से