इशिता के होठो तक पहुंच चुका था , वैसे हीं कोई उसके हाथ को पकड़ लेता है , ऊमी घबरा गई........ " तुम कौन हो..?... " ऊमी घबराते हुए कहती है... " मै रांगा की सहायिका हूँ वीरा जी....रांगा का नाम सुनते हीं इशिता गुस्से में बेड से खड़ी होकर कहती है.... " रांगा मुझे यहां क्यूँ लाया...?.. " ऊमी इशिता की गुस्से भरी आवाज को सुनकर डरते हुए कहती.... " वीरा जी सरदार आपको बता देंगे में जाती हूँ.... " ऊमी वहाँ से एक गहरी सांस लेते हुए बाहर चली गई....इशिता बाहर पहुँचती है, सभी काबिले के लोग अपने