छोटे से कस्बे के एक संकरे मोहल्ले में रामस्वरूप अपनी छोटी सी दुनिया में जी रहा था। उम्र होगी कोई पचपन की, पीठ थोड़ी झुक गई थी, लेकिन मेहनत की आदत ने शरीर को अब भी मज़बूत बनाए रखा था। धूप, बरसात, सर्दी–हर मौसम में साइकिल पर दूध के डिब्बे टांग कर गलियों में घूमता और लोगों तक ताज़ा दूध पहुँचाता।उसका बेटा रोहित, शहर के बड़े कॉलेज में पढ़ रहा था। शुरू में जब दाखिला हुआ था, तब रामस्वरूप ने अपनी बीवी के गहने गिरवी रखे, कुछ उधार लिया और खुद की ज़रूरतें काटकर रोहित को भेजा। “बेटा पढ़-लिख जाएगा,