13.कर्म फल का त्यागयः कर्मफलं त्यजति, कर्माणि संन्यस्यति, ततो निद्वंद्वो भवति॥४८॥अर्थ : जो कर्म फल का त्याग करता है, वह कर्मों का भी त्याग कर देता है, तथा निर्द्वन्द हो जाता है।।४८।।प्रस्तुत सूत्र में नारद जी भक्तों को जो सीख दे रहे हैं, उसे अर्जुन को देने के लिए श्रीकृष्ण ने पूरी गीता कह डाली थी। नारद जी भक्त का लक्षण बताते हुए कहते हैं कि वह कर्म और कर्म फल दोनों का त्याग करता है। आइए, पहले समझते हैं ‘कर्मों के त्याग’ से क्या अभिप्राय है।सामान्यतः कर्मों के त्याग का अर्थ निष्कर्मता (कोई काम न करना) समझ लिया जाता